Savitribai Phule Jayanti 2024: सावित्रीबाई फुले की जयंती..
सावित्रीबाई फुले के जीवन मे बदल..
सावित्रीबाई फुले ने कब कहाँ अलविदा…
सावित्रीबाई फुले की पुस्तकें प्रकाशित..
सावित्रीबाई फुले जी का महिला शिक्षा क्षेत्र में अहम योगदान है. उनका महिला शिक्षा आंदोलन में महत्व का सहभाग है. आज उनक जन्मदिन पर जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी
![](http://swatidarunkar.in/wp-content/uploads/2024/01/Untitled-design-2024-01-03T201720.740-300x150.png)
सावित्रीबाई फुले का परिचय
क्रांतिज्योति सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 में महाराष्ट्र के सातारा जिले के खंडाला तालुका के नायगांव में हुआ था। माता का नाम लक्ष्मीबाई और पिता का नाम खंडोजी नेवसे पाटिल था। उनके पिता गाँव के पाटिल थे। सावित्रीबाई का जन्म ऐसे समाज और युग में हुआ था जहां महिलाओं की आजादी की कोई सोच नहीं सकता था । 1840 में जब सावित्रीबाई 9 वर्ष की थीं, तब उनका विवाह 13 वर्षीय महात्मा जोतिबा फुले से कर दिया गया। ज्योतिबा फुले बहुत आधुनिक विचारों वाले थे।और समाज सेवक थे।
सावित्रीबाई फुले के जीवन में बदल
ज्योतिबा को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था। अछूतों की दुर्दशा देखकर ज्योतिबा को बहुत दुख हुआ और उस समय की अमानवीय परंपराओं और रीति-रिवाजों के खिलाफ ज्योतिबा का दिल जलने लगा। ज्योतिबा ने सोचा कि समाज को पढांना चाहिए और साथी साथ महिलाओंने आगे आना चाहिए.महिलाओंने सीखना चाहिए को और उन्होंने यह विचार सावित्रीबाई को बताया।. एक महिला पढ़ेगी तो पूरा परिवार शिक्षित होगा। ज्योतिबा के इस विचार को सावित्रीबाई ने समझ लिया कि ज्योतिबा के मन में जलती ज्योत (लो) को जलाने का काम सावित्रीाई ने ही किया और वह सामाजिक क्रांति की असली ज्योत (लो) बन गईं। शिक्षा के प्रसार के लिए अन्य सामाजिक क्षेत्रों में भी कार्य करना आवश्यक है यह भी सिख उन्होंने आत्मसाथ कर ली। उन्होंने अपने पति जोतिबा फुले के साथ मिलकर महाराष्ट्र में महिला शिक्षा के प्रारंभिक चरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सावित्रीबाई फुले नें कब कहाँ अलविदा
जुलाई 1887 में ज्योतिराव फुले पक्षाघात से पीड़ित हो गये। 28 नवंबर 1890 को ज्योति राव की उसी बीमारी से मृत्यु हो गई। और उसके बाद 1897 में पुणे में प्लेग महामारी फैल गयी। इन बीमारियों ने कई लोगों की जान ले ली ।इसी बीच प्लेग पीड़ितों की सेवा करते-करते सावित्री बाई को भी प्लेग हो गया। सेवा करते हुए 10 मार्च 1897 को 66 वर्ष की आयु में सावित्री बाई का निधन हो गया।सावित्रीबाई के सामाजिक कार्यों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए, 1995 से पूरे महाराष्ट्र में 3 जनवरी, सावित्रीबाई के जन्मदिन को बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। सावित्रीबाई को ज्ञानज्योति, क्रांतिज्योति उपनामों से भी जाना जाता है। उन्हीं के कारण आज हम महिलाएं आगे बढ़ी हैं।और आपके साथ यह पोस्ट लिख पा रहे है।
सावित्रीबाई फुले इनके कार्य-
- जनवरी, 1848 में, ज्योतिराव ने पुणे के बुधवार पेठ के भिड़ेवाड़ा में एक लड़कियों का स्कूल खोला। इस विद्यालय में सावित्रीबाई को अध्यापिका के रूप में नियुक्त किया गया। इसी कारण से सावित्रीबाई को प्रथम भारतीय शिक्षिका कहा जाता है। उनके काम के लिए उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सम्मानित किया गया था।1848 से 1852 तक उन्होंने कुल 18 विद्यालयों की स्थापना की।
- ई.पू वर्ष 1854 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘काव्यफुले’ प्रकाशित हुआ।
- 28 जनवरी 1863 को उन्होंने अपने घर में ही शिशुहत्या की रोकथाम के लिए एक गृह की स्थापना की और एक प्रसूति अस्पताल भी शुरू किया। हालाँकि ज्योतिराव ने शिशुहत्या निरोधक गृह की शुरुआत की थी, लेकिन इसके रखरखाव की पूरी जिम्मेदारी सावित्रीबाई की थी।
- वर्ष 1893 में सासवड में आयोजित ‘सत्यशोधक परिषद’ की अध्यक्षा सावित्री बाई थीं।
- 1896 के सूखे के दौरान सावित्री बाई ने समाज के सम्मान की मिसाल कायम की।
सावित्रीबाई फुले की पुस्तकें प्रकाशित
- काव्यफुले (संकलन)
- सावित्री बाई के गीत (1891)
- सुबोध रत्नाकर
- बावनकाशीआदि उनकी पुस्तकें प्रकाशित हैं।
3 जनवरी, 2017 को सावित्रीबाई फुले के 186वें जन्मदिन के अवसर पर गूगल ने डूडल प्रकाशित कर उनके महान कार्य का सन्न्मान कीया।